आज हम रस के बारे में जानेगे कि रस क्या होता है इसके कितने प्रकार होते हैं। रस के अंग के प्रकार के बारे में भी आज बात करने वाले है साथ ही इनके उदाहरण भी जानेंगे।
रस क्या है?
रस काव्य की आत्मा है उसे पढ़ने सुनने में जो आनंद की अनुभूति होती है उसे रस कहते हैं।
जिसके चार अंग हैं –
- स्थाई भाव
- विभाव
- अनुभाव
- संचारी भाव
(1)स्थाई भाव
स्थाई भाव का मतलब प्रधान भाव प्रधान भाव वही हो सकता है जो रस की अवस्था तक पहुंचता है स्थाई भाव की संख्या 9 मानी गई है स्थाई भाव ही रस का आधार है एक रस में मूल में एक स्थाई भाव होता है तथा रसों की संख्या 9 है जिन्हें नवरस कहा जाता है बाद में आचार्य ने दो और भाव वात्सल्य और भगवत वत्सल को भी रस की मान्यता दी तो 11 हो गए।
(2)विभाव
किसी स्थाई भाव को रस की अवस्था तक जगाने या उद्दीपन करने वाले तत्व को विभाव कहते हैं ।
विभाव दो प्रकार के होते हैं
- आलंबन विभाव
- उद्दीपन विभाव
1. आलंबन विभाव
जिसका आलंबन पाकर स्थाई भाव हो जाते हैं उसे आलंबन विभाव कहते हैं ।
जैसे -नायक और नायिका
आलंबन विभाव के दो प्रकार होते हैं
- आश्रयालंबन
- विषयालंबन
(२) उद्दीपन विभाव
जिन वस्तुओं या परिस्थितियों को देखकर स्थाई भाव उद्दीपित होते हैं उद्दीपन विभाग कहलाते हैं ।
जैसे -चांदी, उद्यान, नायक नायिका की शारीरिक चेष्टाएं।
(3) अनुभाव
मनोगत भाव को व्यक्त करने वाले शारीरिक विकार को अनुभाव कहते है । इनकी संख्या आठ मानी गई है।
(4) संचारी भाव
मन में संचरण करने वाले प्रभाव को संचारी भाव कहते हैं इनकी संख्या 33 है।
आचार्य शुक्ल के अनुसार 34 है।
रस | स्थायी भाव |
शृंगार रस | रति या प्रेम |
हास्य रस | हास |
करुण रस | शोक |
वीर रस | उत्साह |
रौद्र रस | क्रोध |
भयानक रस | भय |
वीभत्स रस | जुगुप्सा/ घृणा |
अदभुत रस | विस्मय/ आश्चर्य |
शांत रस | सम / निर्वेद |
वात्सल रस | वात्सल्य |
भक्ति रस | भागवत / रति /अनुराग |
(1) शृंगार रस -इसके 2 भाग होते हैं।
(१)संयोग शृंगार -जिसमें किसी नायक या नायिका के मिलन का वर्णन होता है वहां संयोग शृंगार होता है ।
उदाहरण –
बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय
सोहे करे भोहन हसे देन करे नटि जाए।
(२) वियोग शृंगार -जिसमें किसी नायक या नायिका के अनुराग का वर्णन वहां वियोग श्रृंगार होता है ।
उदाहरण-
राम को रूप निहारत जानकी कंगन के नग की परछाई याते सबै भूली गई कर टेकि रही
(2)हास्य रस -किसी काव्य को पढ़कर आनंद या हास की अनुभूति होती है वहां हास्य रस होता है।
उदाहरण-
बंदर काहे बंदरिया से चलो नहाने गंगा
बच्चों को छोड़ो घर पर होने दो हुडदंगा।
(3 ) करुण रस -किसी काव्य को पढ़कर शोक का अनुभव होता है वह करुण रस होता है
उदाहरण-
अभी तो मुकुट बंधा था माथ हुए कल ही हल्दी के हाथ।
खुले भी ना थे लाज के बोल खिले थे चुंबन शून्य कपोल।।
हाय रुक गया यही संसार ‘बना सिंदूर अनल अंगार ।
(4) वीर रस -किसी काव्य को पढ़कर आनंद या उत्साह की अनुभूति होती है वहां वीर रस होता है।
उदाहरण –
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मरदानी वह तो झांसी वाली रानी थी ।।
(5 ) रौद्र रस -किसी काव्य को पढ़कर क्रोध कि अनुभूति होती है वहां रौद्र रस होता है
उदाहरण –
श्री कृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्रोध से जलने लगे
सब शोक अपना भूल कर करताल युगल करने लगे।
(6 ) भयानक रस -जिस काव्य को सुनकर भय उत्पन्न होता है वहां भयानक रस होता है।
उदाहरण –
देखें शिव बारात में भूत प्रेत शिव वाल
थर थर कापे नारी भाग चले सब बाल ।
(7) वीभत्स रस-किसी काव्य को पढ़कर को पढ़कर जुगुप्ता या घृणा होती है वहां वीभत्स रस होता है ।
उदाहरण-
जेनर माझी खात है मुंडा पूछ समेत।
तेनार नरके जाते हैं नाती भूत समेत ।
(8 ) अदभुत रस -किसी काव्य को पढ़कर आश्चर्य या विस्मय होता है वहां अदभुत रस होता है।
उदाहरण –
देख यशोदा शिशु के मुख् मे, सकल विश्व की माया।
क्षण भर को वह बनी अचेतन, हिल ना सकी कोमल काया।।
(9) शांत रस-किसी काव्य को पढ़कर सम या निर्वेद का अनुभव होता है वहां शांत रस होता है।
उदाहरण-
भरा था मन में नव उत्साह सीख लूं ललित कला का ज्ञान।
इधर रह गंधर्वों के देश, पिता की हूं प्यारी संतान।।
(10 ) वात्सल्य रस-किसी काव्य को पढ़कर वात्सल्य होता है वहां वात्सल्य रस होता है ।
उदाहरण-
जसोदा हरि पालनै झुलावै।
हलरावै, दुलराई मल्हावै जोई सोई कछु गावै।।
मेरे लाल कौ आउ निदरिया काहे न बेगि सौ अवै ।।
(11) भक्ति रस-जिस काव्य को पढ़कर रति या अनुराग की अनुभूति होती है वहां भक्ति रस होता है ।
उदाहरण-
प्रभुजी !तुम चंदन हम पानी।
जाके अंग-अंग वास समानी।।