छंद क्या है?
निश्चित गति और यति के क्रम में जो काव्य रचना होती है उसे छंद कहते हैं। छंद की रचना करने वाले शास्त्र को पिंगल कहते हैं।
छंद के अंग
- चरण
- वर्ण और मात्रा
- संख्या और क्रम
- गण
- गति
- यति
- तुक
छंद के भेद
मात्रा और वर्णक्रम के आधार पर छंद के दो भेद है-
- मात्रिक छंद
- वर्णिक छंद
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मात्रिक छंद
जिस छंद में केवल मात्राओं की गणना होती है उसे मात्रिक छंद कहते हैं।
मात्रिक छंद तीन प्रकार के होते हैं –
- सम मात्रिक छंद
- अर्द्ध सम मात्रिक छंद
- विषम मात्रिक छंद
सम मात्रिक छंद
सम मात्रिक छंद जिन छंदों के चारों चरणों में मात्रा संख्या या वर्ण -क्रम एक समान होता है उसे सम मात्रिक छंद कहते हैं।
सम मात्रिक छंद के प्रकार
- चौपाई
- रोला
- गीतिका
- हरिगीतिका
(1)चौपाई –
एकमात्र ऐसा छंद है जिसमें प्रत्येक चरण में 16 16 मात्रा होती है ।
उदाहरण –
दीन दयाल विरद संभारी, हरऊ नाथ मम संकट भारी।
(2)रोला-
इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएं होती हैं तथा 11 13 मात्राओं की यति होती है।
उदाहरण-
जो जनहित पर प्राण निछावर है कर पाता।
जिसका तन है किसी लोकहित में लग जाता।।
(3)गीतिका-
इसके एक चरण में 14 और 12 के क्रम से 26 मात्राएँ होती हैं तथा अंत में लघु स्वर और गुरु स्वर होता है।
उदाहरण –
प्रभु आनंद दाता ज्ञान हमको दीजिये।
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये।
लीजिए हमको शरण में, हम सदाचारी बने।
ब्रह्मचारी, धर्मरक्षक वीर व्रतधारी हम बनें।
(4)हरिगीतिका –
जिसमें प्रत्येक चरण में 28 मात्राएं होती हैं इसमें 16 और 12 मात्राओं पर यति होती है तथा अंत में एक लघु और गुरु होता है।
उदाहरण –
कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए।
हिमके कणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए ।।
अर्द्ध सम मात्रिक छंद –
जिन छंदों में पहले और तीसरे तथा दूसरे चौथे चरण में मात्र संख्या और वर्णक्रम समान होता है उन्हें अर्थ सम मात्रिक छंद कहते हैं।
अर्ध सम मात्रिक छंद के प्रकार –
- दोहा
- सोरठा
- उल्लाला
- बरवै
(1)दोहा
-इसके पहले और तीसरे चरण में 13 13 मात्राएं तथा दूसरे और चौथे चरण में 11 11 मात्राएं होती हैं।
उदाहरण
अर्थ न धर्म न कर्म रुचि, गति न चहुं निर्वाण।
जन्म जन्म सियाराम पद, यह वरदान ना आन।।
(2)सोरठा –
यह दोहा का उल्टा होता है इसके पहले और तीसरे चरण में 11 11 मात्राएं तथा दूसरे और चौथे चरण में
13 13 मात्राएं होती हैं।
उदाहरण
“सुनि केवट के बैन प्रेम, लपेटे अटपटे।
विहसे करुना नैन, चितइ जानकी लखन तन।।
(3) उल्लाला-
इसके प्रत्येक चरण में 15 व 13 के क्रम से 28 मात्राएं होती हैं। इसके पहले और तीसरे चरणों में 15-15 तथा दूसरे और चौथे चरणों में 13-13 मात्राएँ होती हैं।
उदाहरण –
करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेश की।
हे मातृभूमि! तू सत्य ही, सगुण-मूर्ति सर्वेश की।”
(4) बरर्वे-
इसके प्रथम एवं तृतीय चरण में 12-12 मात्राएँ तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरण में 7-7 मात्राएँ हाती है।
उदाहरण
वाम अंग शिव शोभित, शिवा अदार ।
सरद सुवारिद में जनु, तड़ित विहार ।।
विषम मात्रिक छंद के प्रकार
- कुंडलियां
- छप्पय
(1)कुंडलियां-
यह दोहा रोला छंद की योग से बनता है एक दोहे के बाद एक रोला छंद रखने से कुंडलियां छंद हो जाता है इसके इसके इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएं होती हैं।
उदाहरण
“बिना विचारे जो करे, सो पाछे पछिताय।
काम बिगाड़े आपनों, जग में होत हंसाय।।
जग में होत हसाय चित्त में चैन न पावे।
खान पान सनमान, कछु मनहि न भावे।।
कह गिरधर कविराय, दु :ख कछु टरत ना टारे।
खटकट है जिय माही, करें जो बिना विचारे।।
(2) छप्पय-
यह छःपंक्तियों का छन्द होता है। इसमें चार चरण रोला के + दो चरण उल्लाला के होते है। प्रथम चरण में 24-24 मात्रा और अंतिम में 28-28 मात्रा होता है। चूंकि रोला में 24 मात्रा और उल्लाला में 28 मात्रा होता है।
उदाहरण
जिसकी रज में लोट, लोट कर बड़े हुए है
घुटनों के बल सरक, सरक कर खड़े हुए है।
परम हंस समबाल्य, काल सब सुख पाए।
जिसके कारण धूल मरे हीरे कहलाए।
हम खेल कूदे हर्ष युत, जिसकी प्यारी गोद में
हे मातृ भूमि तुझको निरखि, मगन क्यों न हों मोद।
वर्णिक छंद
जिस छंद मै केवल वर्णों की गणना हो उसे वर्णिक छंद कहते हैं।